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कविता

बहुत पिला दी है

आंद्रेइ वोज्नेसेन्‍स्‍की


पहली बार तुमने इतनी पी है
शर्त तो नही लगाई थी?
या यह कसूर है बहार का?
खिड़की के बाहर
महकती है रात और नागदोना।
दीवार की तरह खड़ी नजर आती है फर्श''
बहुत पिला दी गई है उसे।

औरतों और उनके दोस्‍तों के बीच
टहल रही है एक देवकन्‍या -
सातवीं कक्षा की छात्रा।
सब कुछ उसे दिखता है धुँधला-धुँधला।

क्‍या करे वह बेचारी
अनुभव करना चाहती है वह -
कैसा लगता है बड़ा होना।

कोई टब लाकर रख देता है उसके सामने
दूसरे कमरे में
जोर-जोर से बज रहा है जाज :
'सब कुछ इस दुनिया में होता है पहली बार,
अभी नहीं, तो होगा कुछ घड़ी बाद,
आखिरी बार की निस्‍बत
अच्‍छा लगता है पहली बार''।

कोने में किसकी हैं ये
देव प्रतिमा की-सी थकी आँखें?
वे न तो घूमती हैं आवारा
न ही खींच लाती हैं किसी को अपने पास
चीखती है बस, हताश!

नाचती आकृतियों से घिरी
इस आकृति में
क्‍या दिखता है इन आँखों को।

 


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